Schizophrenia Symptoms and Causes : सिजोफ्रेनिया के कारण, लक्षण

  सिजोफ्रेनिया क्या है ? What is Schizophrenia ?

    सिजोफ्रेनिया मस्तिष्क की एक गंभीर बीमारी है। सिजोफ्रेनिया मस्तिष्क के विकास में हुई गड़बड़ी के फलस्वरूप होने वाला रोग है। सिजोफ्रेनिया से ग्रसित लोगों को अक्सर दिल दहला देने वाले लक्षण का अनुभव होता है। सिजोफ्रेनिया स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से होता है। यह बीमारी पुरुषों में जल्दी उभरती है। 

Schizophrenia Symptoms and Causes
Schizophrenia Symptoms and Causes

     सिजोफ्रेनिया के कारण :Causes of schizophrenia:

    1-   जिन लोगों के परिवार में किसी करीबी संबंधी को यह रोग है उस परिवार के अन्य सदस्यों में यह रोग होने की संभावना आम जनता से अधिक होती है। उदाहरण के तौर पर यदि माता या पिता में यह बीमारी है। तो उनके बच्चों में यह रोग होने की संभावना 10% होती है। 

     2- हमारे मस्तिष्क में कई रसायन कार्य करते हैं। इनमें से कुछ रसायनों सेरीटोनिन, डोपामिन और ग्लूटामेट का विशेष रूप से रोग उत्पन्न करने में योगदान होता है।

     3 – सिजोफ्रेनिया मस्तिष्क के विकास में हुई गड़बड़ी के फल स्वरुप होने वाला रोग है। यह गड़बड़ियां किशोरावस्था तक शांत रहती है। उसके बाद मस्तिष्क के विकास के दौरान हुए बदलाव इन असामान्य कोशिकीय संबंधों के साथ मिलकर बीमारी के रूप में अन्य लक्षण उत्पन्न कर देते हैं। कभी-कभी किसी शारीरिक बीमारी या कमजोरी के कारण भी इस रोग की संभावनाएं बढ़ जाती है। इस प्रकार बहुत से रोगियों में यह रोग बुखार या अन्य शारीरिक बीमारियों के तुरंत बाद भी होते देखा गया है।




   सिजोफ्रेनिया के लक्षण :Symptoms of schizophrenia:

   सिजोफ्रेनिया के रोगी को तरह-तरह की आवाजें सुनाई पड़ती है। जो केवल उसी व्यक्ति को सुनाई देती है। किसी अन्य को नहीं यह आवाज उसकी इच्छा के विरुद्ध उसको सुनाई देती है। कभी-कभी यह आवाजें एक-दो व्यक्ति की न होकर कई व्यक्तियों की हो सकती है। जो आपस में ही बातें करते हैं रोगी से बातें करते हैं। रोगी के बारे में टिप्पणियां करते हैं। 

  सिजोफ्रेनिया का प्रमुख लक्षण सोचने और बातचीत में आई गड़बड़ी है। मरीज की बात में शब्दों और वाक्यों में परस्पर कोई संबंध नहीं रहता है। कुछ रोही परिस्थिति एवं समय से परे लगातार बातें करते रहते हैं। जिसमें कभी-कभी बिल्कुल नये शब्दों का समावेश हो जाता है। इसके विपरीत कुछ रोगी बोलते ही नहीं किसी बात का उत्तर ही नहीं देते हैं बस एकदम नेत्रों से टकटकी लगाए देखते रहते हैं या रोगी बात करते-करते बिना किसी कारण के अचानक चुप हो जाता है पूछने पर वह यह कहता है कि उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया है उसके मस्तिक से सारी बातें ही किसी ने गायब कर दी हो।




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  • कभी-कभी रोगी को ऐसा लगने लगता है जैसे अन्य व्यक्ति उसके दिमाग को किसी खुली किताब की तरह आसानी से पढ़ कर उसके हर गुप्त विचार तक को जान लेते हैं।
  • कुछ रोगियों को यह लगता है कि अन्य बाहरी शक्तियां या यंत्र उनके दिमाग, विचारों, भावनाओं और शारीरिक हरकतों को किसी कठपुतली की तरह नियंत्रित कर रहे हैं।
  • कुछ रोगियों को ऐसा लगता है कि अन्य व्यक्ति उनके विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं उन को मारना चाहते हैं अथवा उनकी पत्नी या पति का अन्य लोगों से अनैतिक यौन संबंध है।
  • कुछ मरीज मूर्तियों की तरह हो जाते हैं और अक्सर एक ही अवस्था में घंटों खड़े, बैठे लेटे रह सकते हैं। इन भावनाओं से रोगी अधिक भयभीत, बेचैन और कभी-कभी अपने में सिमट जाते हैं। उनकी भाषा बोलचाल, रहन सहन, हाव-भाव और व्यवहार इतना अलग होता है कि अन्य लोगों को यह समझ से परे अथवा भयभीत कर देता है।
  • कुछ रोगियों में यह क्षमता भी समाप्त हो जाती है वह न तो खुशी का अनुभव कर पाते हैं और न दुख का अनुभव कर पाते हैं। चेहरे का तेज और चमक गायब हो जाता है। मरीज चुपचाप अपने वातावरण से विपरीत टकटकी लगाए देखता रहता है। किसी भी बात का उसपे कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  • कुछ मरीज बिना किसी कारण के हंसते या रोते दिखाई पड़ते हैं।



  • कुछ अन्य मरीजों में सोचने में परस्पर विरोध हो सकता है। रोगी को जब हंसना चाहिए तब वह रोता है या जब उसे रोना चाहिए तब वह हंसता है जैसे कि अपनी मां की मृत्यु के बारे में बात करते हुए वह बड़ा ही प्रसन्न हो जाता है अथवा अपनी सफलताओं के बारे में बताते हुए वह रोने लगता है।
  • कुछ रोगी बड़ी विचित्र मुद्रा में काफी देर तक बैठाया लेटा रहता है कभी-कभी यह मुद्रा देखने में बड़ी ही दुखदाई लगती है जैसे रोगी का एक पैर पर दोनों हाथ ऊपर उठाकर बहुत देर तक खड़े रहना। कभी-कभी यह रोगी बिना पलक झपकाए किसी कोने या छत की ओर देखते रहते हैं।
  • सिजोफ्रेनिया के रोगी को अकेले में रहना ज्यादा अच्छा लगता है। किसी चीज के बारे में महत्त्वकांक्ष नहीं रहती रोज के क्रियाकलापों में परिवर्तन आ जाता है। रोगी कई बार क्रूर और हिंसक बर्ताव करें लगता है। कई बार तो रोगी खुद को बेवजह अपराधी मानने लगता है।

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