नेल क्लबिंग क्या है? What is nail clubbing?
इस रोग में नाखून ऊपर या नीचे की ओर चम्मच की तरह मुंह जाते हैं। हाथों और पैरों के नाखूनों की संरचना में बदलाव जाता है। नाखूनों के रंग में भी लगातार बदलाव आ जाता है नाखून लाल या स्पंज हो जाते हैं। नेल क्लबिंग की समस्या अकेले या फिर अन्य लक्षणों जैसे सांस की तकलीफ या खांसी के साथ हो सकती है। इसके अलावा कई अन्य स्थितियों जैसे फेफड़ों के रोग, हृदय रोग और पाचन तंत्र की स्थितियोंं के कारण नेल क्लबिंग की स्थिति देखने को मिल सकती है। आंकड़ोंं के मुताबिक नेल क्लबिंग के 90 फीसदी मामले फेफड़े के कैंसर से संबंधित होते हैं। मेडिकल टर्म में नेल क्लबिंग को ‘हाइपरट्रॉफिक ऑस्टियोआर्थ्रोपैथी’ कहा जाता है।
नेल क्लबिंग के कारण :Reasons for nail clubbing:
- हाइपोथायरायडिज्म औक खासतौर पर ग्रेव रोग में नेल क्लबिंग के लक्षण दिख सकते हैं।
- अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कारणों से भी नेल क्लबिंग का खतरा होता है।
- ह्रदय से जुडी जन्मजात समस्याओं के कारण भी यह समस्या हो जाती है।
- फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं के कारण भी नेल क्लबिंग की समस्या हो जाती है।
- आंकड़ों के अनुसार नेल क्लबिंग के 29 फ़ीसदी मामले फेफड़ों के कैंसर से जुड़े होते हैं।
- नेल क्लबिंग की समस्या अनुवांशिक भी होती है अगर माता-पिता में से किसी एक को यह समस्या है तो उनके बच्चों में यह समस्या होने की पूरी संभावना रहती है।
- दिमाग से जुड़ी समस्याएं भी नेल क्लबिंग का कारण बन सकती हैं।
- बच्चों में नेल क्लबिंग कई कारणों जैसे सियानोटिक कॉग्नेटल हार्ट डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस और क्रोनिक इंफ्लामेटरी बाउल सिंड्रोम से हो सकता है।
नेल क्लबिंग के लक्षण :Characteristics of nail clubbing:
- रोगी की भूख कम हो जाती है।
- रोगी को उल्टी आती हैं।
- खट्टी डकारों की शिकायत रहती है।
- बिना किसी कारण के वजन घटने लगता है।
- दस्त की शिकायत रहती है।
- पेट में ऐठन रहती है।
- मल में खून आता है।
- रोगी के पेट में सूजन आ जाती है।
- मल से दुर्गंध आती है।
- पेट में दर्द रहता है।
- खांसी के साथ खून आता है।
- पीला, भुरा या हरे रंग का बलगम आता है।
- सांस तेजी से चलती है।
- सांस लेने में समस्या होती है।
- ऐसी खांसी जो धीरे-धीरे बढ़ती रहती है।
- रोगी को घबराहट होती है।
- होंठ, नाखून और त्वचा नीली पड़ जाती हैं।
- हृदय की गति अनियमित हो जाती है।
- सीने में दर्द या दबाव महसूस होने लगता है।
- सीटी स्कैन या अन्य परीक्षणों के माध्यम से फेफड़े के कैंसर के साथ-साथ फेफड़ों और हृदय से संबंधित स्थितियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना
- हृदय की स्थिति के मूल्यांकन के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम
- आर्टरी ब्लड गैस या पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट के माध्यम से फेफड़ों के कार्य और फेफड़ों के अंतर्निहित रोगों के बारे में पता करना
- लिवर फंक्शन टेस्ट और थायराइड फंक्शन टेस्ट जैसे खून के परीक्षण।
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