Leprosy ! लेप्राॅसी क्या है,लेप्राॅसी(कुष्ठ या कोढ़) के कारण और लक्षण,

       लेप्राॅसी (कुष्ठ या कोढ़) क्या है ? What is leprosy ?        लेप्राॅसी एक भयंकर संक्रमण रोग है जो माइक्रोबैक्टेरियम लेप्रो द्वारा उत्पन्न होता है। यह बैक्टीरिया पहले तंत्रिकाएं (nerves) त्वचा, व शरीर के दूसरे अंगों पर प्रभावित होते हैं। जिस कारण शरीर पर विकार उत्पन्न हो जाते हैं। जिसे कुष्ठ, कोढ़ या लेप्राॅसी रोग कहते हैं।
        इस रोग में रोग का प्रभाव शरीर के किसी एक अंग अथवा  पूरे शरीर पर भी हो सकता है। संपर्क से होने वाला यह रोग संक्रमण होता है। यह रोग एक से दूसरे वंश में चला जाता है। यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को अधिक होता है। इस रोग के लक्षण 4 से 6 अथवा उससे भी अधिक वर्ष बाद प्रकट हो सकते हैं। इस रोग में त्वचा सुन हो जाती है। त्वचा पर गांठे बन जाती है जो बाद में फट जाती है और वहां घाव हो जाते है।      लेप्राॅसी के कारण :         आधुनिक चिकित्सा के अनुसार लेप्राॅसी रोग माइकोबैक्टेरियम लेप्री नामक बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होता है। इस बैक्टीरिया का आकार अंडाकार होता है। यह रोग मच्छरों के काटने से भी फैलता है। यह रोग संक्रमित व्यक्ति की त्वचा को छूने से या संक्रमित सुई लगाने से फैलता है। संक्रमित व्यक्ति का पस या खून स्वस्थ व्यक्ति पर लगने पर भी यह रोग हो जाता है। जो लोग बार-बार यौन रोगों के शिकार होते हैं, वह भी इस रोग से पीड़ित रहते हैं।       चर्म रोग यदि पुराने हो जाए तो आगे चलकर लेप्राॅसी में परिवर्तित हो जाते हैं। मक्खियां भी इस रोग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का काम करती हैं। रोगी के पस, थूक, बलगम, घाव से मक्खियां बैक्टीरिया को लेकर स्वस्थ लोगों में रोग फैला देती है। मक्खियों के कारण यह रोग आसानी से फैलता है।      लेप्राॅसी के लक्षण : symptoms of leprosy :
  • लेप्राॅसी के लक्षण कुछ महीनों से लेकर कई सालों बाद प्रकट हो सकते हैं।
  • त्वचा पर छोटे-छोटे या गुलाबी रंग के चकत्ते हो जाते हैं। जिन्हें छूने पर कुछ महसूस नहीं होता।
  • हाथ पैरों में सुई सी चुभती है और हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं।
  • हाथ पैर सुन हो जाते हैं।
  • हाथ पैरों को छूने से कुछ महसूस नहीं होता।
  • कभी-कभी रोगी के हाथ भी मुड़ जाते हैं।
  • रोग के शुरू में मांसपेशियों में दर्द होता है।
  • रोगी को बुखार आ जाता है।
  • शरीर के विभिन्न अंगों में खुजली हो जाती है।
  • त्वचा अधिक चिकनी हो जाती है।
  • पसीना बहुत आता है।
  • थोड़ी सी धूप में निकलने पर त्वचा में जलन होने लगती है।
  • त्वचा पर लाल चकत्ते उभर आते हैं और त्वचा पर सूजन आ जाती है।
  • रोगी को बुखार, सिर दर्द और बाल उड़ने लगते हैं।
  • नाक, गले व चेहरे पर गांठे बनकर गलने लगते हैं।
  • टेस्टीज नष्ट हो सकते हैं।
  • रोगी को नपुसंकता हो जाती है।
  • पैर अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं।
  • आंखों में अल्सर बन जाता है और रोगी अंधा हो जाता है।
  • हाथ पैरों की हड्डी आसानी से फ्रैक्चर हो जाती है।
  • गले में खराश रहती है।
  • नाक की हड्डी नष्ट हो जाती है और नाक बैठ जाती है।
  • पैरों की उंगलियां गलने लगती है।
  • नाक कान,भौंह, चेहरे आदि पर कठोर गांठें बन जाती हैं।
 

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याद रहे –
 
     बैक्टीरिया शरीर में धीरे-धीरे बढ़ते हैं और 2 से 7 वर्षों में रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। बैक्टीरिया मुख्यतः हाथ, पैरों की नसों, त्वचा, म्यूकस मेंब्रेन व ऊपरी स्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं।
 
 

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