Alumina 30 Homoeopathic Medicine Symptoms and Benefit in Hindi

Alumina 30 Homoeopathic Medicine Symptoms and Benefits in Hindi

 

   रोगी किसी भी तरह का निर्णय लेने में असमर्थ रहता है। भ्रम में रहता है निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है जिन चीजों को वह पहले वास्तविक रूप में जानता था वह अब उसे अवास्तविक लगने लगती हैं अगर वह कोई चीज कहता है तो उसे ऐसा लगता है जैसे कोई दूसरा व्यक्ति कह रहा हो, जब वह कुछ देखता है तो उसे ऐसा लगता है कि कोई दूसरा व्यक्ति देख रहा है। यह उसके मन की गड़बड़ाहट रहती है विचारों में गड़बड़ी आ जाती है उसे अपने व्यक्तिगत के विषय में संदेह हो जाता है उसे यह निश्चित नहीं रहता कि वह कौन था ऐसा लगता है कि वह नहीं है लिखने पढ़ने में गलतियां करता है शब्दों का अनुचित रूप से प्रयोग करता है।

    रोगी को ऐसा लगता है कि समय बहुत धीरे से बीत रहा है वह समझता है कि चीजें जिस तेजी से होनी चाहिए थी उस तेजी से नहीं हो रही है सब कार्यों में देरी हो रही है जिस काम में आधा घंटा लगना चाहिए उसे दिनभर लग रहा है।

     रोगी अगर चाकू को देखता है या खून देता है तो उसके भीतर दूसरे या अपना ही खून करने की प्रबल इच्छा उठ जाती है वह आत्महत्या करना चाहता है।




 

     रोगी सुबह उठने के बाद उदास रहता है रोता रहता है अपने कार्य से दूर भागता है रोगी को डर लगता है वह समझता है कि वह जिन परिस्थितियों से घिरा है उन से हटने पर उसका दुख कुछ कम हो जाएगा वह अपने मानसिक दशा को सोचने लगता है वह इस बात से डरता है कि कहीं वह पागल न हो जाए जब वह सोचता है तो अपना नाम तक भूल जाता है उस समय वह यह सोचने लगता है कि वह अब सचमुच पागल हो गया है सुबह सोकर उठने के बाद उसमें ऐसी विचार ज्यादा आते हैं इस औषधि के इस्तेमाल करने से यह सारी समस्याएं ठीक हो जाती है।




 

     रीड की हड्डी के नर्वस ही शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील करने का काम करते हैं अगर उन में कमजोरी आ जाती है तो भोजन निगलने में कठिनाई अनुभव होने लगती है हाथ उठाने या हाथ हिलाने में भी कठिनाई होती है शरीर के किसी भी अंक में पैरालाइसिस हो सकता है मल द्वार में कमजोरी आ जाती है। हाथ पैरों में सुन्नपन आने लगता है रीड की हड्डी में जलन होती है कमर में दर्द की शिकायत रहती है रोगी कहता है कि कमर में ऐसा दर्द हो रहा है जैसे रीड की हड्डी के निचले हिस्से में गर्म लोहे की सरिया गाड़ रखी हो कमर की मांसपेशियों में ऐंठन होती है और सूजन आ जाती है उस समय इस मेडिसन का इस्तेमाल करना चाहिए।

    स्त्री या पुरुष दोनों को लंबे समय तक पेशाब के लिए बैठे रहना पड़ता है पेशाब नहीं उतरता है या पेशाब बहुत देरी से उतरता है पैशाब बहुत धीरे-धीरे निकलता है रोगी कहता है पेशाब जल्दी नहीं होता है। कभी-कभी धार की जगह सिर्फ बूंदे ही टपकती है यह अंगों में आयी कमजोरी के कारण होता है इस मेडिसिन के इस्तेमाल करने से यह सारी समस्याएं ठीक हो जाती हैं।  




 

    रेक्टम बहुत कमजोर हो जाता है रेक्टम भरा रहने के बाद भी मल बाहर नहीं निकलता मल बहुत कठोर हो जाता है उसे  बाहर निकलने में परेशानी होती है। जोर लगाने के बाद भी मल बाहर नहीं निकलता है रोगी को पेट की मांसपेशियां से जोर लगाकर मल को निकालना पड़ता है लेकिन गुदाद्वार की मांसपेशियां मल को बाहर निकालने में कोई सहायता नहीं करती पतले मल को भी निकालने में जोर लगाना पड़ता है कठिनाई से मल निकालने पर प्रोस्टेट ग्लैंड का स्राव निकल पड़ता है क्योंकि मल के लिए जोर लगाने पर ग्रंथि पर जोर पड़ता है।  अगर रोगी कहे कि उसे पतले मल के लिए जोर लगाना पड़ता है परंतु उसका पेट हवा से भरा रहता है। चेहरा खून की कमी के कारण पीला हो जाता है और कमजोरी आ जाती है डकारे आती हैं हवा बाहर निकलती रहती है।

     रोगी को चक्कर अधिक आते हैं ऐसा लगता है जैसे चीजें लगातार घूम रही है स्पाइन के रोगों में आंखें बंद करने पर चक्कर आते हैं वृद्ध व्यक्तियों को कमजोरी आ जाने के कारण चक्कर आते हैं चलते समय व्यक्ति डगमगा जाता है इसी कारण पैरों में, हाथों की उंगलियों में सूजन भी आ जाता है।




 

     इस औषधि के रोग सुबह सोकर उठने के बाद बढ़ जाते हैं सुबह सोकर उठने के बाद बच्चा घबरा जाता है शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए यह एक बेस्ट मेडिसिन है अगर रोगी को चलने फिरनी से शरीर के अंगों में जान आने लगे सोकर उठने पर उसे सब कुछ अपरिचित दिखाई दे तो इस मेडिसन का इस्तेमाल करना चाहिए।

      अंगों में आयी कमजोरी का असर नाक और गले पर भी पड़ता है नाक और गले की झिल्ली खुश्क हो जाती है नाक बंद हो जाती है ज्यादातर बाईं नाक बंद होती है नाक का साइज बढ़ जाता है नाक नीली दिखाई देती है नाक से बदबू आती है नाक के अंदर सूखी पड़ी जम जाती है रोगी हर समय खांसता और नाक साफ करता रहता है नाक से खून भी निकलता है गले में बलगम चिपका हुआ रहता है गले के अंदर खुजली होती है ऐसा लगता है जैसे गले में कुछ अटका हुआ है निगलने में कठिनाई होती है तालू में और गले में जख्म हो जाते हैं जिनमें से पीले रंग का कफ निकलता है रोगी कहता है कि उसका गला पक गया है गले के पुराने रोग में यह एक बेस्ट मेडिसिन है।




 

      त्वचा सूख जाती है और उसमें दरारे पड़ जाती हैं त्वचा में खुजली होती है। खुजलाते-खुजलाते त्वचा छिल जाती है और फोड़े फुंसी हो जाते हैं अगर खुजली पहले और फोड़े फुंसी बात को निकले तो एलुमिना का इस्तेमाल करना चाहिए।

       खुजली अधिक होती है ऐसा लगता है जैसे चेहरे पर मकड़ी का जाला लिपटा हुआ है रोगी बैठा बैठा मुंह रगड़ता रहता है हाथों और कमर पर भी ऐसा अनुभव होता है रोगी मुंह पर बार-बार ऐसे हाथ होता है जैसे चेहरे पर से कुछ हटा रहा हो। 

     गला बैठ जाता है गायक थोड़ी देर ही गाता है फिर उसका गला बैठ जाता है गला काम नहीं करता है धीरे-धीरे गले में कमजोरी और अधिक बढ़ जाती है कुछ समय बाद बोलना भी बंद हो जाता है तो उस समय इस मेडिसन का इस्तेमाल करना चाहिए।




 

     रोगी के जननांग बहुत कमजोर हो जाते हैं महिलाओं में लिकोरिया की समस्या अधिक हो जाती है लिकोरिया में पानी टांगों के नीचे तक बहता है यह पानी जलन के साथ आता है त्वचा को काटता है और पीले रंग का होता है या अंडे की सफेदी जैसा होता है इस प्रकार के लक्षण में इस मेडिसिन का इस्तेमाल करना चाहिए।

यूट्रस के मुंह पर जख्म का हो जाना।

जननांगों में कमजोरी का आ जाना।

जननांगों की कमजोरी के कारण नीचे बोझ का अनुभव होना।

     जब 45 वर्ष के आसपास की स्त्री का मासिक धर्म बंद होने का समय आ जाता है तो मासिक धर्म बहुत कम हो जाता है और कमजोरी अनुभव होती है जितना भी मासिक धर्म होता है वह स्त्री को बहुत परेशान करता है उस समय इस मेडिसन का इस्तेमाल करना चाहिए।




 

     गर्भावस्था में अगर कब्ज की शिकायत हो जाए जोर लगाने के बाद मल नहीं निकले तो उस समय इस मेडिसन का इस्तेमाल करना चाहिए।

     अगर स्त्री या पुरुष में गोनोरिया की समस्या हो जाए और मेडिसन का इस्तेमाल करने के बाद गोनोरिया चला जाए लेकिन फिर दोबारा हो जाए तो ऐसी अवस्था में एलुमिना का इस्तेमाल करना चाहिए।

       रोगी में खून की गति बहुत कम हो जाती है सर्दियों में उसके हाथ पैर ठंडे हो जाते हैं और फटने लगते हैं। पैरों में बड़े-बड़े दरारे पड़ जाती हैं और उन से खून निकलने लगता है ठंड से रोग और अधिक बढ़ जाते हैं नम मौसम में वह अच्छा अनुभव करता है त्वचा बहुत खुश्क हो जाती है। रोगी स्वयं को कपड़े से ढक रखना चाहता है शरीर को गर्म कपड़े से ढके रखता है परंतु फिर भी खुली हवा चाहता है। मौसम में आए थोड़े से परिवर्तन में ही उसे ठंड लग जाती है कभी-कभी बिस्तर में लेटे हुए इतनी ठंड लगती है कि रोगी दांत किटकिटाने लगता है परंतु कुछ देर बाद बिस्तर में उसे इतनी खास उठती है और गर्मी लगती है कि रोगी कपड़ा शरीर पर रखना नहीं चाहता है।




 

Modalities – 

Better :

शाम के समय लक्षणों में कमी का आ जाना।

खुली हवा से रोग में कमी।

चलने फिरने से कमी।

ठंडे पानी से नहाने के बाद कमी का हो जाना।

नम हवा से रोग में कमी लेकिन रोगी ठंडी हवा अधिक चाहता है।




 

Worse :

गर्मी में रोग का बढ़ना।

गर्म और बंद कमरे में रोग में वृद्धि।

आलू खाने से रोग में वृद्धि।

बातचीत करने से रोग में वृद्धि।

खुश्क मौसमी रोग का बढ़ना।

बैठे रहने से रोग का बढ़ना।

मासिक धर्म के बाद रोग का बढ़ना।

Uses – As prescribed by a physician.




 

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