Thalassaemia : थैलेसीमिया के कारण और लक्षण

    थैलेसमिया क्या है ?What is Thalassemia ?

       थैलेसमिया माता-पिता द्वारा अपनी संतानों को दिया जाने वाला एक असाध्य रोग है। जो धीरे-धीरे फैलता है। इस रोग में मनुष्य के शरीर की रक्त कण (blood count) अपनी उम्र से पहले ही नष्ट हो जाती है। थैलसीमिया नामक बीमारी अनुवांशिक होती है। सामान्य रूप से रेड ब्लड सेल्स की उम्र करीब 120 दिन की होती है, पर इस रोग के कारण उनकी उम्र केवल 20 दिन की हो जाती है और उसका हिमोग्लोबिन पर असर पड़ता है। जिससे उनकी मात्रा कम होने लगती है। परिणाम स्वरूप बच्चे की मौत हो जाती है इस रोग से ग्रस्त बच्चा 5 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाता। 

      इस रोग का पता तब चलता है। जब 25% बच्चे इस रोग के शिकार गंभीर अवस्था में आ जाते हैं। जिनका इलाज कोई दवा नहीं है। बल्कि जीने के लिए बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। 25% बच्चे बिल्कुल ठीक रहते हैं और बाकी बचे 50% बच्चे रोग को अपने माता पिता की तरह जींस में छिपाए रहते हैं। और उनकी यदि शादी भी ठीक उसी तरह के जींस वाले के साथ हो गई तो वह थैलसेमिया की बीमारी को अपने आने वाली पीढ़ी में फैलाते रहते हैं। 

      थैलसीमिया के नाम के पीछे भी एक रहस्य है वह यह है, कि यह बीमारी सबसे ज्यादा उन लोगों के परिवारों में होती है, जो मेडिटेरेनियन समुद्र के चारों तरफ रहते हैं। इसलिए थैलसेमिया को मेडिटेरेनियन एनीमिया भी कहते हैं। यह एनीमिया मुख्य रूप से इटली, सऊदी अरब, इराक, ईरान, अफ्रीका का उत्तरी भाग तथा यूरोप के दक्षिणी भाग के निवासियों में पाया जाता है।

     थैलेसीमिया के कारण :Causes of Thalassemia:

    थैलेसीमिया नामक बीमारी आनुवंशिक होती है और इस बीमारी का कारण रक्त में विकार है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि माता-पिता दोनों के गुणसूत्र थैलेसीमिया से ग्रसित हो चुके हैं। तो उनकी संतान को ज्यादातर होमोजाइगस थैलेसीमिया होगी जो ज्यादा गंभीर रोग है। पर यदि एक ही व्यक्ति इस रोग से ग्रसित है तो हेट्रोजाइगस थैलेसीमिया होगी जो कम खतरनाक है।  थैलेसीमिया में पहले तिल्ली बढ़ती है उसके बाद लीवर बढ़ जाता है।

 

    थैलेसीमिया रोग के लक्षण :Symptoms of Thalassemia disease:

  • इस बीमारी के शिकार बच्चों में रोग के लक्षण 4 से 6 महीने में ही नजर आने लगते हैं।
  • बच्चे की त्वचा और नाखूनों में पीलापन आने लगता है।   
  • आंखें और जीभ भी पीली पड़ने लगती हैं।   
  • बच्चे के चेहरे पर भद्दापन आ जाता है।
  • त्वचा का रंग गहरा होने लगता है।
  • लीवर और तिल्ली की लंबाई बढ़ने लगती है।
  • बच्चे का विकास रुक जाता है।
  • बच्चों में खून की अत्यधिक कमी आ जाती है।
  • बच्चों में सिर की हड्डी और चेहरे का ऊपरी जबड़ा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है

 
   थैलेसीमिया मेजर में 2 जीन खराब हो जाते हैं। जबकि थैलेसीमिया माइनर में एक जीन खराब होता है। यदि मां-बाप थैलेसीमिया माइनर रोग से ग्रस्त हैं तो उनके बच्चों को मेजर रोग होने की कोई संभावना नहीं रहती, थैलेसीमिया माइनर का शिकार व्यक्ति सामान्य जीवन जीता है, और उसे कभी इस बात का आभास तक नहीं होता कि उसके खून में कोई दोष है। अगर उसकी पत्नी को भी यह दोष है। तब बच्चे को थैलेसीमिया मेजर रोग हो सकता है। 
 

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