Dr.Willmar Schwabe India Abrotanum Q की जानकारी और फायदे in hindi

 

Dr.Willmar Schwabe India Abrotanum Q की जानकारी और फायदे in hindi.

Dr.Willmar Schwabe India Abrotanum Q की जानकारी और फायदे in hindi

एब्रोटैनम (ABROTANUM) 


यह औषधि सुखण्डी रोग (marasmus) में अत्यन्त उपयोगी है विशेषकर जबकि मात्र निम्नाम ही प्रभावित हो यद्यपि भूख अच्छी लगती है। किसी रोग का अन्य स्थान पर प्रकट होना (metastatis), दस्तों को एकदम रोक देने पर वात-रोग उत्पन्न हो जाना। दबी हुई रोगावस्थाओं के कुपरिणाम विशेषकर गठियावात से पीडित रोगियों में यक्ष्मापरक उदरावरणशोथ (tuberculous peritonitis), सद्रय फुस्फुसावरणशोथ (exudative pleurisy) एवं ऐसे ही अन्य रोग जिनमें सद्रव प्रक्रिया होती है। जलक्ष (hydrothorax) या अन्त पृयता (empyaemia) के लिए वक्ष की शल्यचिकित्सा के पश्चात् यक्ष ने दबाव की अनुभूति बनी रहना। वात रोग में आराम मिलते ही बवासीर के लक्षणों का उभर आना। बच्चों में नकसीर एवं अण्डकोष में जल संचय (hydrocele) होना।


इन्फ्लुएंजा के बाद जबरदस्त कमजोरी होना (काली फॉस) ।


मन-रोगी बहुत ही जिद्दी, चिडचिडा, धीर निराश एवं हतोत्साहित होता है। 


चेहरा-झुरीदार ठण्डा, रूखा, पीला-सा निस्तेज होता है। आँखों के चारों ओर नीला-सा चैरा व आँखें झुकी झुकी सी रहती है। कृषता (emaciation) के साथ मुँहासे जो सूखने के बाद काले दाने की तरह उदभेद छोड़ जाते हैं। नकसीर फूटना चेहरे पर रक्तवाहिकार्बुद होना (angloma of face) |


आमाशय – कीचड जैसा स्वाद भूख अच्छी लगती है, परन्तु शरीर सूखता चला जाता है।

मल के साथ अनपचा भोजन निकलता है। आमाशय में काटने-फाड़ने जैसा दर्द, जो रात्रि में बढ़ता है। आमाशय का पानी में तैरने जैसी अनुभूति होना; ठण्डा अनुभव पड़ता है। पेट में कुतरने जैसी अनुभूति के साथ ख एवं इसकी वजह से भिनभिनाहट। अजीर्ण के साथ अधिक मात्रा में बदबूदार बगन होना। 


उदर-उदर के अन्दर कठोर ढेले की तरह गाँठ (lump) का होना उदर फूला हुआ। पर्यायक्रम से कब्ज एवं अतिसार बवासीर मलत्याग की निरंतर हाजत बने रहना, रक्तमय मल, बातरोग लक्षणों के घटते ही वृद्धि होना। गोल कृमि (ascarides) | नाभि से रस-रक्त का रिसाव होता है। आँतों के नीचे की ओर धंसने की अनुभूति होना।


श्वसन-श्वसन संस्थान में कच्चेपन की अनुभूति होना। श्वास-प्रश्वास में बाधा अतिसार के उपरान्त खुश्क खाँसी का होना वक्ष के आर-पार दर्द हृदय के आस-पास के क्षेत्र में जबरदस्त वेदना होना।


पीठ-गर्दन इतनी कमजोर होती है कि रोगी सिर को ऊपर उठाकर नहीं रख सकता। कमर लुज कमजोर एवं दर्दमय कटि प्रदेश में वेदना जो दृष्णरज्जु (spermatic cord) तक पहुँच जाती है। बवासीर के साथ त्रिकारिथ (sacrum) मे दर्द।


बाह्यांग – स्कन्धों, बाहुओं कलाइयों एवं टखनों में दर्द उँगलियों एवं पैरों में चुभन एवं ठण्डापन लगना।’ टाँगें अत्यन्त सूखी हुई। सन्धियाँ लुंज एवं जकड़ी हुई हाथ पैरों में वेदनामय सकुचन होना। (अमोन म्यूर)। 


त्वचा-चेहरे पर दाने निकलते हैं, जिनके दब जाने पर त्वचा का रंग बैंगनी सा पड़ जाता है। त्वचा थुलथुली एवं ढीली होती है। फोड़े निकलते हैं। बाल झड़ते हैं विवाइयों में खुजली होती है।


रूपात्मकतायें –


वृद्धि – ठण्डी हवा में, सावों को रोकने से।

हास-गति करने से।

 तुलना करें- गठिया में स्क्रोफुलेरिया, ब्रायोनिया स्टेलरिया, बेंजोइक एसिड सुखण्डी (marasmus) में आयोडम, नैट्रम म्यूर।

 मात्रा-3 से 30 शक्ति।


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