Cervical Spondylitis, गर्दन का दर्द , सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के कारण और लक्षण,

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है?What is cervical spondylitis?

 

उम्र के साथ या अन्य रोगों से हड्डियों में बदलाव आ जाते हैं यह बदलाव सर्वाइकल स्पाइन में भी आते हैं इसमें वर्टेब्रल डिस्क्स के बीच का स्थान कम हो जाने से रोगी गर्दन में दर्द महसूस करता है। जिसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं।

गर्दन की चाल सुचारू रूप से चलाने के लिए गर्दन में 32 जोड़े होते हैं। गर्दन के दर्द से होने वाली परेशानी चाल भी कम हो जाने से दैनिक कार्यो में अधिक रुकावट बनती है।

40 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति इसके अधिक शिकार होते हैं इन रोगियों में आरंभ में हल्का दर्द होता है यह दर्द सुबह के समय बढ़ जाता है।

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महिलाओं में कम उम्र में होने वाला गर्दन का दर्द रूमेटिक अर्थराइटिस का एक लक्षण हो सकता है।हाथ पैरों में सूजन व गर्दन मैं दर्द इन महिलाओं में समस्या और बढ़ा देती है। गर्दन के सभी जोड़ प्रभावित हो सकते हैं।ऐसे मरीजों में दर्द गर्दन के ऊपरी भाग में सिर के पिछले हिस्से में अधिक होता है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के कारण:Causes of Cervical Spondylitis:

  • सामान्य हड्डियों में आए बदलाव से।
  • गर्दन की टी.वी. भी लंबे समय से दर्द का कारण हो सकती है।
  • गर्दन की जन्मजात विकृतियां कभी-कभी दर्द का कारण होती हैं।
  • गर्दन की ग्रंथियों में सूजन आ जाने पर भी।
  • भारी बस्तों के बोझ से बच्चों को सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस का खतरा हो सकता है।
  • ऐसे लोग जो गर्दन के ज्यादा प्रयोग वाले कार्यों में लगे हैं जैसे लिखने पढ़ने का कार्य ऊंची तकिया लगा कर सोने वाले लोग।
  • खराब सड़कों पर स्कूटर मोटरसाइकिल का ज्यादा प्रयोग करते हैं।

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रोग की शुरुआत गर्दन की स्पाइन वाली हड्डी में डिक्स से होती है। दो हड्डियोंं के बीच का अंतराल सर्वप्रथम कम होना शुरू होता है और साथ ही थोड़ी हड्डी बढ़ना शुरू हो जाती है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण:Symptoms of cervical spondylitis:

  • गर्दन में दर्द  प्रारंभ में तो रुक-रुक कर होता है परंतु बाद में निरंतर रहने लगता है यह दर्द काम करते समय ज्यादा और धीमी गर्दन रखने से तकलीफ होती है लेटने से दर्द कम हो जाता है साथ ही दर्द निवारक दवाएं और सिखाई भी दर्द में राहत लाती है।
  • गर्दन की सभी मांसपेशियों में कड़ापन रहता है।
  • गर्दन में तनाव रहता है जो गर्दन के इस्तेमाल करने पर खत्म हो जाता है।
  • रोगी को चक्कर आता है।
  • रोगी अपनी गर्दन थोड़ी आगे करके रखता है।
  • गर्दन को उपर नीचे करने पर भी दर्द होता है।
  • गर्दन पर पीछे की तरफ मांसपेशियों पर दबाने पर दर्द होता है।
  • गर्दन घुमाने पर चट की आवाज आती है  ।
  • सिर दर्द रहता है जो पीछे के हिस्से में अधिक होता है।
  • कंधों में हल्का भारीपन व दर्द रहता है।
  • हाथों का सुन्न पड़ना या उनमें जान न रहना।
  • नसों की वजह से हाथों में कंपन होता है।
  • कंधों में दर्द तथा हाथों में झनझनाहट होती है।

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