Adrenalinum 30 CH की जानकारी लाभ और फायदे in hindi

 

Adrenalinum 30 CH की जानकारी लाभ और फायदे in hindi.

 

Adrenalinum 30 CH की जानकारी लाभ और फायदे in hindi

 

एड्रिनेलिनम Adrenalinum 30 CH

 

एड्रिनैलिन अथवा एपिनेफिन अधिवृक ग्रन्थि के भीतरी भाग (medulla of the suprarenal gland) का सक्रिय तत्व है (अधिवृक्क ग्रन्थि के बाहरी परत का साथ पृथक नहीं है) जिसका उपयोग शारीरिक क्रियाओं को नियमित करने के लिए एक रासायनिक दूत की तरह किया जाता, है. वास्तव में इसकी उपस्थिति संवेदी तन्त्रिका (sympathetic nerve) को सक्रिय रखने के लिए अनिवार्य है। एड्रिनॅलिन की क्रिया शरीर के समस्त अंगो पर उसी प्रकार होती है जैसे कि संवेदी तंत्रिकान्तों का उद्दीपन होता है 1.1000 के घोल का श्लैष्मिक झिल्लियो पर बाह्य प्रयोग करने पर यह शीघ्र ही थोड़ी देर के लिए रक्त का बहाव कम कर देता है जैसा आँखों में डालने पर देखा गया है कि आँखों का सफेद भाग पीला सा पड़ जाता है और कई घंटों तक बना रहता है। तीव्र प्रजारण के कारण इसकी क्रिया बहुत ही शीघ्र प्रभावी निर्विकारी एवं अहानिप्रद होती है यदि इसे लगात व्यवहृत नहीं किया जाय। पशुओं में लगातार प्रयोग करने पर देखा गया है कि उनमें मैदार्बुद (atheroma) एवं हृदविक्षतियों हृदपेशीपरक रोगावस्थाएं उत्पन्न हो जाती है। धमनियों, हृदय, अधिवृक्क ग्रन्थियों एवं वाहिका प्ररेक प्रणाली (vaso motor system) मुख्यत प्रभावित होते हैं।

 

  एड्रिनैलिन का मुख्य कार्य संवेदी तंत्रिकान्त (sympathetic endings), जिनमें प्रमुखत उदर के आन्तरिक क्षेत्र को उत्तेजित करना है के फलस्वरूप परिसरीय लघु धमनियों में संकोचन पैदा होकर रक्त दाब बढ़ जाता है। यह विशेषकर आमाशय एवं आँतों में देखा जाता है, त्वचा एवं गर्भाशय में कम मस्तिष्क एवं फेफड़ों में बिल्कुल नहीं। आगे यह भी देखा गया है कि नाडी दर धीमी पड़ जाती है (अधिवृक्क पिरामिद वाहिका उद्दीपन) हृदय की गति को सबल कर देती है (हृदपेशी के सिकुड़ने की क्षमता बढ़ी हुई) डिजिटेलिस से मिलती जुलती है ग्रन्थियों की बढ़ी हुई संकीयता मूत्र में शर्करा, श्वास केन्द्र में धँसकन, आँख गर्भाशय योनि के पेशी ऊतकों की सिकुडन, आमाशय, अंत मूत्राशय में पेशीऊतकों में ढीलापन आ जाना।

 

उपयोग– इस औषधि का उपचार सम्बन्धी व्यवहार मुख्यत इसकी वाहिका संकोचन क्रिया पर निर्भर करता है, अतः यह एक अत्यन्त शक्तिशाली एवं शीघ्रक्रिया करने वाली तन्तु संकोचक एवं रक्तस्राव रोधक औषधि है और शरीर के सभी हिस्सों से होने वाले अतिसूक्ष्म कैशिका रक्तस्राव (capillary haemorrhage) को रोकती है, जहाँ भी बाह्य या सीधा प्रयोग करने की सुवि था हो नाक कान, मुँह, गला, स्वस्यन्त्र आमाशय मलान्त्र गर्भाशय मूत्राशय रक्तस्रावी अवस्थाएँ जो रक्त के दोषपूर्ण जमाव के कारण न हो उनमें उपयोगी है। पूर्णरूपेण अरक्तता. स्थान विशेष पर रक्त का अभाव (ischaemia) बिना हानि के उत्पन्न कर सकती है। आंख, नाक गला एवं स्वरयन्त्र की शल्यचिकित्सा के दौरान इस औषधि का 1.10,000 11,000 के अनुपात में घोल छिड़ककर या रुई पर रखकर लगाया जाय तो यह बिना अतिरिक्त रक्त बहाये शल्यक्रिया का दक्षतापूर्वक सम्पादन कराती है।

 

अस्थिगहरों (इथमोइड एव स्फीनाइड साइनस) में रक्तसंचय (congestion) एवं परागज ज्वर (hay fever) में ऐड्रिनलिन क्लोराइड के 15000 के अनुपात में घोल का गर्म छिड़काव किया जाय तो तुरन्त लाभ मिलता है। यहाँ पर इसकी तुलना हिपर सल्फ 1X से की जा सकती है जो कि स्राव को शुरू करके बाहर निकाल फेंकती है। बर्लाहोफ्स रोग में 11,000 के अनुपात में त्वचा की ऊपरी सतह पर इंजेक्शन दिया जाता है। वास्य रूप में यह स्नायु हाल स्नायु प्रदाह प्रतिवर्त्ती वेदना (reflex pains), गठिया, वात रोग आदि में मल्हम के रूप में व्यवहृत होता है। 11,000 के घोल की 1-2 बूँद का व्यवहार वहाँ किया जाता है जहाँ कि बात नाडियों त्वचा के अधिकाधिक निकट होती है (एच जी कार्लटन)।

 

उपचार विज्ञान की दृष्टि से (therapeutically) एड्रिनैलिन का उपयोग फेफड़ों में उग्र रक्त संकुलन (acute congestion) दमा, ग्रेव एवं ऐडीसन के रोग धमनी काठिन्य (arterio sclerosis) जीर्ण महाधमनीशोथ हृदशूल (angina pectoris) हीमोफीलिया रक्ताल्पता परागज ज्वर रक्तोदउदभेद (serum (ashes), पित्ती इत्यादि में होता है। डा पी. जॉस्सेट ने लिखा है कि उन्होंने होम्योपैथिक सिद्धान्तों के अनुसार एड्रिनैलिन की अतिसूक्ष्म मात्रा में मुख द्वारा व्यवहृत कराके हृदशल व महाधमनी शोध के तरुण एवं जीर्ण रोगियों की सफलता पूर्वक उपचार किया है। छाती में सिकुड़न की अनुभूति के साथ मानसिक व्यग्रता (mental anxiety) इस औषधि के मार्गदर्शक लक्षण है। घुमेरी जी मिचलाना एव वमन भी साथ रहते हैं। उदरीय वेदना भी रहती है। अचेत करने वाली औषधियों के व्यवहार करने के दौरान आघात (shock) अथवा हृत्पात होना (heart failure), ऐसी स्थिति में यह औषधि वाहिका प्राचीरों में नाडियों के अन्तिम शिरों पर किया करके बहुत ही शीघ्रता के साथ रक्त दाब बढ़ा देती है।

 

मात्रा- एड्रिनैलिनक्लोराइड के 11000 घोल की 1-5 बूँदें पानी में मिला करके ऊपरी त्वचा के अन्दर (hyodermically) इंजेक्शन लगाते हैं अन्त प्रयोग यानि खिलाने के लिए 5 से 30 बूँदें। चेतावनी / सावधानी-इस औषधि का आक्सीजन के प्रति आकर्षण होने की वजह से यह जल एवं तनुकृत अम्लीय घोलों में खराब हो जाती है। इसलिए इस घोल को हवा और प्रकाश से बचाकर रखना चाहिए। इसका व्यवहार जल्दी-जल्दी नहीं करना चाहिए, क्योंकि हृदय और धमनियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। होम्योपैथिक उपयोग के लिए 2 से 6 शक्ति (तनुकरण)।

 

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