घेंघा (गलगंड) रोग के लक्षण, कारण, बचाव इलाज – Goiter ke karan, lakshan, bachav, ilaj in Hindi

 

घेंघा (गलगंड) रोग के लक्षण, कारण, बचाव इलाज – Goiter ke karan, lakshan, bachav, ilaj in Hindi


घेंघा रोग क्या है – What is Goiter in Hindi

घेंघा रोग क्या होता है?


घेंघा रोग का मतलब है थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ना या उसमें सूजन आना। आयोडीन की कमी घेंघा रोग का सबसे मुख्य कारण होता है। इस रोग में थायराइड ग्रंथि की कार्य क्षमता कम हो जाती है या बढ़ जाती है या फिर सामान्य भी रह सकती है। यदि घेंघा काफी बड़े आकार का है, तो उससे घुटन महसूस होना व सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।


घेंघा (गलगंड) के प्रकार – Kinds of Goiter in Hindi

गलगंड रोग कितने प्रकार का होता है?


इसके मुख्य रूप से दो प्रकार हैं:


डिफ्यूस स्मॉल गोइटर:

इसमें पूरी थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और छूने पर वह नरम महसूस होती है।


नोड्यूलर (गांठदार) गोइटर:

इसमें थायराइड के कुछ हिस्सों का आकार बढ़ जाता है या गांठ बन जाती है। उन्हें छूने पर उभार महसूस होता है।


घेंघा रोग के लक्षण – Goiter Side effects in Hindi

घेंघा रोग के लक्षण क्या हैं?


हर व्यक्ति के अनुसार गोइटर का आकार भी छोटा या बड़ा हो सकता है। ज्यादातर मामलों में सूजन छोटी होती है जिससे किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है।


घेंघा रोग के गंभीर मामलों में कुछ लक्षण विकसित हो सकते हैं, जैसे:


सांस लेने में कठिनाई

खांसी

गला बैठना

खाद्य व पेय पदार्थ निगलने में कठिनाई

थायराइड के क्षेत्र (गले के अगले हिस्से) में दर्द होना

थकान महसूस होना

गर्मी बर्दाश्त न होना

अधिक भूख लगना

पसीना अधिक आना

महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म

स्टूल (मल) का बार-बार आना

मासपेशियों में ऐंठन

घबराहट होना

वजन कम होना


घेंघा रोग के कारण व जोखिम कारक – Goiter Causes and Hazard Variables in Hindi

घेंघा रोग क्यों होता है?


भोजन द्वारा कम मात्रा में आयोडीन लेना घेंघा रोग का सबसे मुख्य कारण है। थायराइड हार्मोन बनाने के लिए आयोडीन बहुत जरूरी होता है। आयोडीन मुख्य रूप से समुद्री पानी या तटीय क्षेत्रों की मिट्टी में पाया जाता है। जो लोग अंतर्देशीय इलाकों या ऊंचाई वाले स्थानों पर रहते हैं, उनमें अक्सर आयोडीन की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में थायराइड ग्रंथि आयोडीन को प्राप्त करने के लिए और मेहनत करने लग जाती है, जिस कारण से उसमें घेंघा रोग विकसित हो जाता है।




हार्मोन-अवरोधक खाद्य पदार्थ खाने से आयोडीन की कमी की शुरूआती स्थिति और बदतर हो सकती है। इन खाद्य पदार्थों में मुख्य रूप से पत्ता गोभी, ब्रोकोली और फूल गोभी आदि शामिल हैं।


हालांकि दुनियाभर के ज्यादातर इलाकों में घेंघा रोग का कारण भोजन के माध्यम से कम मात्रा में आयोडीन प्राप्त करना ही होता है। जिन जगहों पर साधारण नमक व अन्य खाद्य पदार्थों में आयोडीन मिलाया जाता हैं, उन क्षेत्रों में आयोडीन की कमी होने के अन्य कारण हो सकते हैं।


घेंघा रोग के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं:


ग्रेव्स रोग:

जब आपकी थायराइड ग्रंथि बहुत अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाने लग जाती है (हाइपरथायरायडिज्म) तो इस स्थिति में भी घेंघा रोग हो सकता है। ग्रेव्स रोग में आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बनाए जाने वाले एंटीबॉडीज गलती से थायराइड ग्रंथि को क्षति पहुंचाने लग जाते हैं, जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में थायरॉक्सिन बनने लग जाता है। इस स्थिति में थायराइड ग्रंथि में सूजन आने लग जाती है।


हाशिमोटो रोग:

घेंघा रोग अंडरएक्टिव थायराइड (हाइपोथायरायडिज्म) के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। हाशिमोटो रोग एक स्व-प्रतिरक्षित विकार है। यह थायराइड ग्रंथि को क्षतिग्रस्त कर देता है, जिससे थायराइड हार्मोन अधिक बनने की बजाए बहुत ही कम बनने लग जाता है। इस स्थिति में थायराइड ग्रंथि और अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाने के लिए लगातार उत्तेजित रहती है, जिस कारण से उसमें सूजन आ जाती है।


थायराइड कैंसर:

थायराइड में कैंसर रहित हल्की गांठ की तुलना में थायराइड कैंसर बहुत कम मामलों में होता है। यदि थायराइड ग्रंथि में कोई गांठ है, तो उस गांठ के अंदर से ऊतक का सेंपल लिया जाता है (बायोप्सी प्रक्रिया) और उस सेंपल की जांच की जाती है। जांच करके यह पता लगाया जाता है कि यह गांठ सामान्य है या कैंसर युक्त है।


गर्भावस्था:

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में “ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन” (HCG) नामक एक हार्मोन बनने लग जाता है। इस हार्मोन के कारण भी थायराइड ग्रंथि का आकार थोड़ा सा बढ़ सकता है।


सूजन, जलन व लालिमा:

थायरोडिटिस सूजन व लालिमा से संबंधी एक स्थिति है, जिसके कारण थायराइड ग्रंथि में सूजन, दर्द व लालिमा हो जाती है। इस स्थिति के कारण थायरॉक्सिन अभी अधिक मात्रा में बनने लग जाता है।


घेंघा रोग होने का खतरा कब बढ़ता है?


कुछ कारक हैं, जो घेंघा रोग होने का खतरा बढ़ा देते हैं, जैसे:


लिंग:

घेंघा रोग होने का खतरा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होता है।

उम्र:

घेंघा रोग विकसित होने का खतरा उम्र के साथ-साथ बढ़ता रहता है, खासकर 40 साल की उम्र के बाद।


रेडिएशन के संपर्क में आना:

यदि आपकी छाती या गर्दन के आस पास कोई रेडिएशन थेरेपी हुई है, तो घेंघा रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।


कुछ प्रकार की दवाएं:

कुछ प्रकार की दवाएं भी हैं, जिनसे घेंघा रोग विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, इन दवाओं में इम्यूनोसुप्रेसेंट्स (immunosuppressants), एंटीरेट्रोवायरल (Antiretrovirals), एमियोडारोन (Amiodarone) और सायकिएट्रिक ड्रग लिथियम (Mental medication lithium) आदि दवाएं शामिल है।


क्षेत्र:

जिन क्षेत्रों में घेंघा रोग काफी प्रचलित हो ऐसे क्षेत्रों में रहने से भी यह रोग विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।


भोजन:

अधिक मात्रा में ऐसे खाद्य पदार्थ खाना जो घेंघा रोग होने का खतरा बढ़ा देते हैं, जैसे पत्ता गोभी व फूल गोभी आदि।


स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थिति:

यदि आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधित कोई रोग हुआ है, तो आपको भी घेंघा रोग हो सकता है।


पारिवारिक समस्या:

परिवार में पहले किसी को घेंघा रोग होने से भी आपको यह रोग होने का खतरा बढ़ सकता है।


घेंघा रोग के बचाव – Anticipation of Goiter in Hindi

घेंघा रोग से बचाव कैसे किया जाता है?


कुछ तरीकों की मदद से घेंघा रोग के कुछ मामलों की रोकथाम की जा सकती है, जैसे:


यदि घेंघा रोग अधिक गंभीर नहीं है, तो ज्यादातर मामलों में आहार में बदलाव करके इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। थायराइड हार्मोन बनाने के लिए आयोडीन बहुत जरूरी है। कुछ मरीज पर्याप्त आयोडीन नहीं खाते जिस कारण से उनकी थायराइड ग्रंथि को पर्याप्त आयोडीन प्राप्त करने के लिए और मेहनत करनी पड़ती है।


हर स्वस्थ व्यक्ति को हर रोज लगभग 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की आवश्यकता पड़ती है, आयोडीन की यह मात्रा साधारण नमक के आधे से कम चम्मच (साधारण चम्मच) में होती है। आयोडीन की उचित मात्रा खासतौर पर गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए बहुत जरूरी होती है।


आयोडीन को अधिक मात्रा में ना खाएं। हालांकि यह काफी असामान्य मामलों में होता है, लेकिन आयोडीन को अधिक मात्रा में लेने से भी घेंघा रोग हो सकता है। यदि अधिक आयोडीन लेने से आपको यह समस्या हो रही है, तो आयोडीन फोर्टिफाइड नमक (नमक में आयोडीन को कृत्रिम रूप से मिलाना) व अन्य आयरन सप्लीमेंट्स ना लें

आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करने से घेंघा रोग के सामान्य मामलों को कम किया जा सकता है।


घेंघा रोग का परीक्षण- Finding of Goiter in Hindi

घेंघा रोग की जांच कैसे की जाती है?


स्थिति की जांच करने के लिए डॉक्टर आपके लक्षणों की गंभीरता व कितने दिनों से हो रहे हैं आदि के बारे में पूछेंगे। इस दौरान डॉक्टर आपकी गर्दन का परीक्षण करेंगे और उसमें सूजन आदि का पता लगाएंगे। उसके बाद वे थायराइड फंक्शन टेस्ट करवाने का सुझाव देंगे। जिसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि आपकी थायराइड ग्रंथि ठीक से काम कर रही हैं या नहीं। गर्दन में सूजन आदि की जांच करके डॉक्टर को घेंघा रोग का पता लगाने में मदद मिलती है।


इसके अलावा घेंघा रोग की जांच करने के लिए डॉक्टर कुछ अन्य टेस्ट भी कर सकते हैं, जैसे:


थायराइड फंक्शन टेस्ट:

खून में थायराइड हार्मोन के स्तर की जांच करके हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म आदि रोगों का पता लगाया जा सकता है। डॉक्टर खून में थायराइड ग्रंथि द्वारा बनाए गए हार्मोन और थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन के स्तर की जांच करेंगे। थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन को “टीएसएच” (Thyroid-invigorating chemical) कहा जाता है, यह एक प्रकार का केमिकल होता है जो पीटयूटरी ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। यह केमिकल थायराइड ग्रंथि को थायराइड हार्मोन बनाने के लिए उत्तेजित करता है।


हाइपोथायरायडिज्म:

जब खून में कम मात्रा में थायराइड हार्मोन या अधिक मात्रा में टीएसएच मिले तो इसका मतलब आप हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त हैं।


हाइपरथायरायडिज्म:

जब खून में टीएसएच का स्तर सामान्य से कम और थायराइड हार्मोन का स्तर सामान्य से ऊपर हो तो इसका मतलब हाइपरथायरायडिज्म होता है। ऐसा अक्सर ग्रेव्स रोग जैसे मामलों में होता है।


फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी:

इस टेस्ट प्रक्रिया में मरीज की थायराइड ग्रंथि से सेंपल के रूप में ऊतक का टुकड़ा लेने के लिए एक पतली सुई अंदर डाली जाती है। यह प्रक्रिया अल्ट्रासाउंड के निरीक्षण में की जाती है। इस सेंपल की माइक्रोस्कोप के द्वारा जांच की जाती है।

एंटीबॉडी टेस्ट:

हाइपरथायरायडिज्म के कारण की जांच करने के लिए डॉक्टर एक विशेष प्रकार का ब्लड टेस्ट करते हैं, जिसमें शरीर द्वारा बनाए गए एंटीबॉडीज का पता लगाया जाता है। यदि एंटीबॉडीज का स्तर बढ़ा हुआ है, तो वह ऑवरएक्टिव थायराइड का संकेत देता है।


अल्ट्रासाउंड:

 घेंघा रोग का पता लगाने के लिए डॉक्टर या तो सामान्य अल्ट्रासाउंड स्कैन करवाने का सुझाव देते हैं या फिर रेडियोएक्टिव आयोडाइड अपटेक स्कैन करवाने का सुझाव देते हैं। रेडियोएक्टिव आयोडाइड टेस्ट में डॉक्टर एक विशेष प्रकार की फिल्म का उपयोग करता है, जिससे विशेष प्रकार की छवि प्राप्त होती है।


इस छवि में थायराइड ग्रंथि में रेडियोएक्टिव आयोडाइड की सटीक जगह का पता लग जाता है। थायराइड ग्रंथि में अचानक से विकसित हुई गांठ अक्सर गंभीर नहीं होती और द्रव से भरी होती हैं। अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से इनका पता लगा लिया जाता है।


घेंघा रोग का इलाज – Goiter Treatment in Hindi

घेंघा रोग का इलाज कैसे किया जाता है?


घेंघा रोग का इलाज इसके कारणों पर निर्भर करता है,जैसे:



आयोडीन की कमी के कारण घेंघा रोग होना:

आयोडीन से भरपूर खाद्य पदार्थ खाने से इस स्थिति का इलाज किया जा सकता है। आयोडीन में उच्च खाद्य पदार्थ जैसे आयोडीन युक्त नमक।


हाइपरथायरायडिज्म:

इस स्थिति का इलाज करने के लिए थायराइड ग्रंथि के कार्यों की गति को धीमा करने वाली दवाएं दी जाती हैं। यदि ये दवाएं काम ना करें तो ऐसी स्थिति में ऑपरेशन की मदद से थायराइड ग्रंथि का एक हिस्सा या पूरी थायराइड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है। इसके अलावा रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरेपी की मदद से थायराइड हार्मोन बनाने वाली सभी या कुछ कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है।


हाइपरथायरायडिज्म:

इसका इलाज हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के साथ किया जा सकता है।


रेडियोएक्टिव आयोडीन:

यह अंडरएक्टिव थायराइड के इलाज का दूसरा प्रकार है, जिसमें रेडियोएक्टिव आयोडीन मुंह के द्वारा लिया जाता है। जब रेडियोएक्टिव आयोडीन थायराइड ग्रंथि तक पहुंचता है, तो यह थायराइड की कोशिकाओं को नष्ट करके घेंघा रोग के आकार को छोटा कर देता है। हालांकि इस इलाज से थायराइड ग्रंथि अंडरएक्टिव हो सकती है।


थायराइड कैंसर:

इस स्थिति का इलाज करने के लिए ऑपरेशन की मदद से थायराइड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है और उसके बाद रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट किया जाता है। ऑपरेशन के बाद आपको लिवोथायरॉक्सिन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है, यह निर्भर करता है आपकी थायराइड ग्रंथि का कितना हिस्सा निकाला गया है। (और पढ़ें – थायराइड कैंसर का इलाज)


ऑपरेशन:

यदि घेंघा रोग के कारण आपको निगलने व सांस लेने में तकलीफ हो रही है या अन्य कोई इलाज काम नहीं कर रहा तो ऑपरेशन किया जाता है। ऑपरेशन की मदद से थायराइड ग्रंथि के कुछ हिस्से या पूरी थायराइड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है।

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