Silicea homoeopathic medicine के फायदे in hindi | Silicea Symptoms and Uses in hindi

 

Silicea homeopathic medicine के फायदे in Hindi | Silicea Symptoms and Uses in Hindi.

Silicea Symptoms Symptoms Uses and Banefit in hindi

साइलिशिया मनुष्य के शरीर में बहुत ही कम मात्रा में होता है। 

 शरीर में साइलिशिया की कमी हो जाने से हड्डियाँ नर्म हो जाती हैं, मजबूती खो देती हैं। इस दवा के बारे में शुरूआत में ही एक बात बता देना जरूरी है कि इस दवा का असर बहुत देर तक और बहुत गहरा होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों में इसे जल्दी जल्दी नहीं देना चाहिए।

 

 

अब बात करते हैं साइलिशिया के जनरल सिम्टम्स के बारे में,

 रोगी का पेट और सिर बढ़ा हुआ होता है। हाथ पैर दुबले-पतले, कमजोर होते हैं। 

चेहरा पीला फीका, झुरीदार होता है। बूढ़ों जैसा दिखता है।

रोगी का सिर हमेशा ही पसीने से तर रहता है। नींद आते ही माथे पर गर्दन तक पसीना आना शुरू हो जाता है, जिससे उसका तकिया भीग जाता है। शरीर के दूसरे भागों पर पसीना नहीं होता। समस्त शरीर सूखा रहता है। सिर की तरह पैरों के तलवों में भी पसीना आता है। पसीना दुर्गन्ध युक्त होता है।

रोगी विशेषकर बच्चा पौष्टिक आहार खाने पर भी दुबला पतला और कमजोर रहता है। शारीरिक और मानसिक स्तर पर रोगी की वृद्धि रुक जाती है। बच्चा चलना देर से सीखता है। दाँत निकलते समय बच्चों को दस्त आया करते हैं। बच्चों को दूध हजम नहीं होता। 

साइलिशिया को बच्चों की दवा कहा जाता है, इसलिए साइलिशिया के लिए रोगी बच्चों की पूर्ण जानकारी रखना बहुत जरूरी है।

बच्चे का सिर बड़ा होता है। खोपड़ी के सब जोड़ खुले रहते हैं। सिर पर खासकर गर्दन पर बहुत पसीना आता है जिससे उसका तकिया भीग जाया करता है।

चेहरा पीला आकर्षणहीन, बीमारों जैसा होता है। बूढ़ों जैसा लगता है।

बच्चा दुबला पतला होता है। पसलियाँ तक गिनी जा सकती हैं। सीने का भाग कबूतर के सीने के समान आगे की ओर निकला हुआ होता है। रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन रहती है। इसलिए वह आगे की तरफ झुककर चलता है।

हाथ पैर दुबले-पतले कमजोर होते हैं। हड्डियों की कमजोरी की वजह से वह चलना देर से सीखता है। बच्चे के सिर, बगल, हथेलियों और तलवों में पसीना आता है। पसीने से खट्टी गंध आती है। इस विचित्र गंध के कारण बच्चे के पास खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है।

भूख बहुत लगती है। वह खाता भी बहुत हैं, लेकिन उसका शरीर नहीं बनता।

साइलिशिया के बच्चे को दूध हजम नहीं होता। दूध से बदहजमी और दस्त जैसी शिकायतें हो जाती है। बच्चा स्लेट पेन्सिल, कच्चे चावल आदि चूना मिट्टी खाता है।

बच्चा हमेशा ही थका-थका सा रहता है। खेलकूद आदि में कभी भाग नहीं लेता। ऐसे बच्चों के शरीर पर हुआ मामूली सा जख्म भी पक जाया करता है, जल्दी ठीक नहीं होता। बच्चा ठंड सहन नहीं कर सकता। मामूली सी ठंडी हवा से उसकी तबियत बिगड़ जाती है। गर्म कमरे में भी उसे ठंड लगती है। 

हमेशा सिर को ढके  रहता है।

याददाश्त कमजोर होती है। कुछ याद नहीं रख सकता। किसी विषय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता। पढ़ने लिखने से उसका सिर भारी हो जाता है। आत्म-विश्वास  की कमी होती है। इसीलिए वह किसी भी तरह की बौद्धिक या शारीरिक स्पर्धाओं में भाग नहीं लेता।

बच्चा जिद्दी स्वभाव का होता है। वह इतना जिददी होता है कि प्यार से बात करने पर भी अपनी जिद नहीं छोड़ता, बल्कि जोर-जोर से रोने लगता है। रोगी जरा सी भी ठंड बर्दाश्त नहीं कर सकता। मौसम में मामूली सा बदलाव या ठंडक आ जाने पर बरसात में मौसम में ठंडक आ जाने पर, ठंडी हवा लगने पर उसे सर्दी खाँसी, बुखार सिर दर्द आदि हो जाता है। पानी में काम करने से नहाने से उसकी तकलीफें बढ़ जाती है। गर्म कमरे में भी उसे ठंड लगती रहती है। हर समय सिर को कपड़े से ढँके रहता है। सिर पर टोपी, गले में मफलर लपेटे रहता है।

रोगी को ठंड सहन नहीं होती, लेकिन खाने के गर्म पदार्थ उसे अच्छे नहीं लगते। खाने पीने में वह ठंडी वस्तुएँ पसंद करता है। गर्म चीजें ठंडी हो जाने के बाद ही खाता है। यहाँ तक कि चाय भी ठंडी करके ही पीता है। ठंड लगकर या पानी में खड़े होकर काम करने से पैरों का पसीना दब जाता है, जिससे जुकाम, कान बहना, मोतियाबिंद, लकवा, पेट का दर्द, दिमागी थकान, दौरे, हिस्टिरिया, टी बी जैसी बीमारियाँ हो जाती है। रोगी को कब्ज रहती है। मल बहुत सुखा सख्त और लंबा होता है। मल आसानी से नहीं निकलता, निकलते निकलते मलद्वार में वापस लौट जाता है।

हाथ पैर की अंगुलियों के नाखून टूट जाते हैं।

महिलाओं के पीरियड कई महीनों तक बंद रहते है। कभी होती भी है तो बहुत कम होता है महिलाओं को पीरियड के पहले और पीरियड के समय कब्ज की शिकायत होती है।

रोगी गर्म खाना बिल्कुल पसंद नहीं करता। बर्फ का पानी और आइस्क्रीम मीठी चीजें पसंद करता है। माँस, दूध नमकीन भोजन पसंद नहीं करता।

रोगी दूध हजम नहीं कर सकता। दूध से उसका पेट खराब हो जाता है, उल्टियाँ होती हैं या दस्त लग जाते हैं।

 पीप पैदा हो जाने पर पीप सुखाने में साइलिशिया से अच्छी कोई दवा नहीं है। किसी फोड़े या जख्म से बहुत दिनों तक पीप निकलती रहने पर इससे लाभ होता है। शरीर में धँसी हुई बाहरी चीज काँटा, खप्पच, तार, सूई को यह दवा बाहर निकालती है। बच्चों को टीका लगाने के बाद कोई भी बीमारी हो जाने पर इससे फायदा होता है। नई शिकायतें गर्म कमरे के अंदर और गर्मी से बढ़ती है और पुरानी बीमारियों में गर्मी से आराम मिलता है।

यह दवा बच्चों के लिए विशेष लाभदायक है। 

 

दोस्तों अब बात करते हैं साइलिशिया के मेंटल सिम्टम्स  के बारे में, 

 रोगी में आत्म विश्वास की कमी होती है। उसमें हिम्मत नहीं होती। उसमें आत्म-विश्वास नहीं होता। मन में असफलता का भय बना रहता है। लेकिन जब वह काम शुरू कर देता है तो सफलतापूर्वक पूरा कर डालता है।

मानसिक कमजोरी, थकावट रहती है। मानसिक काम नहीं कर सकता। कुछ देर तक लिखने पढ़ने का काम करने से थक जाता है। याददाश्त कमजोर हो जाती है 

रोगी हमेशा ही दुखी और उदास रहता है। एकान्त प्रिय होता है। न किसी की बात सुनने की इच्छा होती हैं और न बात करने की।

रोगी चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। जरासी बात पर उसका पारा चढ़ जाता है। कोई उसका विरोध करे तो आग बबूला हो जाता है। कोई समझाए बुझाए तो और भी ज्यादा गुस्सा हो जाता है। सेक्स के बाद चिड़चिड़ापन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

रोगों संवेदनशील होता है। रोगी को शोर शराबा आवाज सहन नहीं होती। शोर शराबे से वह परेशान हो जाता है। दूसरों की बात आसानी से मान लेता है।

रोगी को ऐसा लगता है कि घर में सब जगह कीले आलपिन आदि बिखरी पड़ी है। वह घर में घूम फिरकर उन्हें तलाशता है और बार बार उन्हें गिना करता है। इन लक्षणों की बीमारी बहुत गम्भीर होती है किन्तु साइलिशिया द्वारा इलाज से वे अच्छी भी हो जाती है। 

डॉक्टर शुस्लर ने साइलिशिया 12 एक्स शक्ति की सिफारिश की थी। पीप पैदा करने के लिए 6 एक्स शक्ति और उसे सुखाने के लिए 30 एक्स शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

पुरानी बीमारियों में ऊँची शक्तियों 30 एक्स से 200 एक्स तक दी जाती हैं। साइलिशिया एक बेस्ट होम्योपैथिक मेडिसिन है। 

 

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