मरीज के कान से स्राव निकलता रहता है जो लगातार या रुक- रुक कर आता है। साथ ही कान में दर्द बना रहता है। भारत में लगभग 40% लोग कान के बहने से पीड़ित हैं। कान का बहना साधारण बीमारी समझी जाती है किंतु वास्तव में है नहीं।कान के बहने पर लोग घरेलू इलाज कराते हैं जिसके परिणाम स्वरूप कान का रोग और अधिक बढ़ जाता है।
कान एक ऐसा अंग है जो मस्तिष्क के बहुत करीब है ।फलस्वरुप कान में फैला कोई भी संक्रमण बहुत जल्दी दिमाग में पहुंचकर कोई भी अनहोनी कर सकता है। अतः कान बहने को सामान्य समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
कारण:
कान के तीन भाग होते हैं बाहरी कान, मध्यकान तथा आंतरिक कान, कान के बहने का कारण बाहरी कान या मध्य कान में इन्फेक्शन होता है।
अगर कान में इंजरी हुई हो तो आपका कान बह सकता है। ट्यूमर के कारण भी कान बहता है।अगर कान में सूजन हो या कान के अंदर फुंसी हो तो आपका कान बह सकता है।कान में एलर्जी की बीमारी भी अक्सर देखी गई है कुछ लोग कान में दवा डालने का भी शौक रखते हैं इन दवाइयों से भी एलर्जी हो सकती है।
अगर कान के पर्दे में सुराग हो जाए और उसके अंदर पानी चला जाए तो कान बह सकता है और सुनने की ताकत कम हो जाती है।यदि टॉन्सिल की बीमारी पुरानी है तो कान में सुराग हो जाता है और बीमारी अंदर ही अंदर फैलती जाती है। मध्य कान की एक खतरनाक बीमारी है जिसे नासूर कहते हैं इस बीमारी से मवाद बनती है। उसके दिमाग तक आने की पूरी संभावना होती है जिससे या तो दिमाग की झिल्ली फट जाने के कारण मेनिजाइटिस हो जाती है अथवा दिमाग में फोड़ा बन जाता है।
जिन बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है खास कर दो साल से छोटे बच्चों में बार बार सर्दी जुखाम होने पर कान बहने की संभावना अधिक रहती है। सिर तथा चेहरे की जन्मजात कमियों वाले बच्चों में कान बहना ज्यादा होता है।
मां-बाप या घर का अन्य कोई सदस्य यदि धूम्रपान करता है तो बच्चों में इससे भी कान बहना अधिक होता है कान बहने वाले बच्चों के घर वालों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए। बोतल से ऊपर का दूध पीने वाले बच्चों में कान बहने की बीमारी अधिक होती है। मां का दूध पिलाने से बच्चों में कान बहने की संभावना कम होती है।
लक्षण:
- कान में भारीपन और दर्द बना रहता है।
- सिर में दर्द व पलकों में सूजन आ जाती है।
- कान से लगातार या रुक रुक कर स्राव होता रहता है।
- कान से गाढ़ा और चिपचिपा स्राव निकलना।
- कान से अगर पस निकले तो साथ में बुखार भी आ जाता है।
- कान से आवाजें आती हैं।
- सुनने की शक्ति कम हो जाती है।
- कान में फुंसी बन जाती है।
- कभी-कभी रोगी को सर्दी के साथ हल्का सा बुखार भी आ जाता है।
- परदे में छेद का होना।
- बच्चों में मानसिक समस्या।
- बुद्धि का विकास कम होना।
- मस्तिष्क में पस पड़ना तथा मेनिन्जाइटिस का होना।
- कान के पीछे की हड्डी का गलना।