Aesculus hippocastanum 30 बवासीर की एकमात्र रामबाण दवा

 

Aesculus hippocastanum 30 बवासीर की एकमात्र रामबाण दवा। | Dr.Reckeweg Aesculus hippocastanum 30 Uses in hindi

Aesculus hippocastanum 30

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम ( AESCULUS HIPPOCASTANUM Q )


इस औषधि की क्रिया मुख्यतः आँतों के निचले भाग पर होती है, वहाँ पर बवासीर वाली शिराओं में रक्त संचित होकर वे फूल जाती है इसके साथ चारित्रिक कमर दर्द होता है परन्तु वास्तविक कब्ज नहीं रहती। बवासीर के मस्सों में दर्द बहुत ज्यादा होता है, लेकिन रक्त बहुत कम निकलता है। व्यापक शिरा रक्ताधिक्य के कारण रक्त प्रवाह में अवरोध पैदा होने के कारण (venous stasis) अपस्फ शिराएँ (vancose veins) जो बैंगनी रंग की दिखती है और इसी की वजह से पाचन क्रिया हृदयक्रिया आँतों की क्रिया आदि सभी मद पड़ जाती हैं। वक्त एवं प्रतिहारी प्रणाली (शिराएं जो उदरीय अंगों से रक्त एकत्रित करके यकृत को ले जाती है जहाँ से रक्त यकृत शिराओं से होता हुआ निम्न महाशिरा में पहुँचता है) निष्क्रिय एवं उनमें रक्तायि हो जाता है. इसके साथ कब्ज भी रहती है कमर में वेदना बने रहना एवं टूट जाने की सी अनुभूति रहती है जिससे रोगी अपने कार्यों को करने के योग्य नहीं रहता। शरीर में चारों तरफ भ्रमणकारी (उड़नशील) दर्द होते हैं। शरीर के विभिन्न हिस्सों में पूर्णता की अनुभूति, स्लैनिक झिल्लियों शुक एवं प्रदाहित गले की लैगिक स्थियों फूल जाती है।


मुख– झुलस जाने की सी अनुभूति पात्विक स्वाद लाला साव (salivation) होता है। जीम पर मोटी परत जमी होती है एवं झुलस जाने की की अनुभूति होती है।


  गला – गरम, छिला हुआ सा निगलते समय कानों में सुइयाँ चुमने जैसा दर्द। कृषिक प्रसनीशोध (फालीक्यूर फैरन्जाइटिस) जिसका सम्बन्ध बहुत रक्ताधिक्यता से होता है प्रसनी (pharynx) की शिराएँ फूली हुई एवं टेढ़ी-मेढ़ी सी होती है। गला खींची हुई वायु के प्रति संवेदनशील छिला हुआ एवं सिकुड़ा हुआ सा महसूस होता है, अपराह में खाना निगलते समय आग से जलने जैसी वेदना होती है। दुर्बल, सूखे हुए से एवं चित प्रधान व्यक्तियों में अपक्षय युक्त ग्रसनीशोथ (atrophic pharyngitis) की प्रारम्भिक अवस्था खखारने पर लसलसा डोरी जैसा मीठे स्वाद का श्लेष्मा निकलता है। ( और अधिक जानें – डायरिया का घरेलू इलाज 👈 )


आमाशय – पेट में पत्थर रखा होने जैसे भार की अनुभूति के साथ कुतरने जैसा धीमा धीमा दर्द जो अक्सर भोजन करने के तीन घंटे बाद प्रगट होता है यकृत प्रदेश में भारीपन एवं स्पर्शासहाता ।


 उदर- यकृत एवं अधिजठर प्रदेश में मन्द-मन्द पौड़ा नाभि क्षेत्र में दर्द पीलिया अधिजठर प्रदेश (hypogastrium) एवं श्रोणि प्रदेश (pelvis) में टपकन।


  मलान्त्र – में सूखापन एवं पीड़ा मलद्वार में तिनके से चुसे अनुभव करना। गुदा में छिल जाने जैसी पीड़ा होना। मल त्याग के उपरान्त अत्यधिक दर्द साथ ही मलान्त्र बाहर निकल आता है। बवासीर के साथ पीठ में तीव्र दर्द होता है बादी एवं खूनी बवासीर, रजोनिवृत्ति के पश्चात् तकलीफ बढ़ जाती है। शुष्क कड़ा एवं लम्बा मल श्लैमिक झिल्ली सूजी हुई लगती है, जिससे मलद्वार में अवरोध पैदा हो जाता है। गोल कृमियों के कारण गुदा में उत्तेजना (irritation) एवं यह औषधि इन कृमियों को बाहर निकाल देने में सहायक होती है। गुदा में जलन होने के साथ सम्पूर्ण पीठ में ठण्ड लगती है।


सिर –  रोगी अवसादग्रस्त (depressed) एवं चिड़चिड़ा होता है। सिर भारी प्रतिवेदना जैसे ठण्ड लग गई हो। माथे में दबाव के साथ मिचली. इसके बाद उदर के दाहिने अधपक प्रदेश (कोख) मे चुमने जैसा दर्द सिर में पिछले भाग से लेकर आगे माथे तक दर्द, साथ ही पड़ी (scalp) में कुंबल जाने जैशी वेदना की अनुभूति होती है जो सुबह के समय अधिक अनुभव होती है। माथे में दायी से बायीं ओर स्नायुशूल को धमक होती है, इसके उपरान्त अधिजहर प्रदेश में उड़नशील दर्द होते हैं बैठी हुई स्थिति में एवं चलते समय रोगी को आते है। और अधिक जानकारी – गैस के घरेलू उपाय 👈


  आँखें – आँखें भारी एवं गर्म होने के साथ आँसू बहते हैं। साथ ही आँखों की रक्तवाहिकाओं का आकार बढ़ जाता है। नेत्रगोलकों में दुखन रहती है।


नाक शुष्क श्वास के साथ खींची जाने वाली बागु ठण्डी लगती है नाशिकापथ इस वायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। नाक की स्लैमिक झिल्ली का तीव्र शोध एवं नाक से अत्यधिक साथ बहता है (coryza) छींके आती है। नासिकामूल पर भारीपन की अनुभूति नाक की टर्बिनेट हड़की की सिल्लियों फूली हुई एवं दलदली जो यकृत सम्बन्धी रोगावस्थाओं के कारण होती है।


मूत्र- बारम्बार थोड़ा-थोड़ा गहरा कीचड़ की तरह गर्म पेशाब गुर्दों में दर्द विशेषकर बायीं ओर के गुर्दे में तथा मूत्रनली (ureter) में।


 पुरुष मल त्यागते समय पौरुषग्रन्धि द्रव (prostatic fiuld) का स्राव होना।


स्त्री- जपनास्थियों के संगम (संधानक) स्थल के पीछे निरन्तर तपकन युक्त वेदना बनी रहती है। श्वेत प्रदर के साथ त्रिकश्रोणिफलकीय सन्धि (sacro-illac articulation) के आर-पार पीठ में लंगड़ेपन (lameness) की अनुभूति होना प्रदर साव गहरा पीला चिपचिपा एवं संक्षारण यानि छीलने वाला होता है, जो मासिक धर्म (menses) के बाद अधिक होता है। ( और अधिक जानें – कंधे के दर्द का इलाज 👈 )


वक्ष-छाती सिकुडी हुई सी लगती है। हृदय की क्रिया पूर्ण एवं भारी होती है, जिसके स्पदन की अनुभूति सम्पूर्ण शरीर में अनुभव की जा सकती है। स्वरयन्त्र में प्रदाह (laryngitis) यकृत रोगों के कारण खाँसी आना: छाती में गर्मी की अनुभूति होना बवासीर से ग्रसित व्यक्तियों में हृदय के चारों ओर दर्द।


  बुखार – शाम 4 बजे ठण्ड लगती है। ठण्ड सम्पूर्ण पीठ में लगती है। ज्वर शाम 7 बजे से 12 बजे तक रहता है। सांध्यकालीन ज्वर के साथ त्वचा सूखी एवं गर्म रहती है। ज्यर के साथ अधिक मात्रा में गर्म पसीना आता है।


बाह्यांग-हाथ-पैरों में दुखन एवं दर्द दर्द बायें कन्धे के सबसे ऊपरी बिन्दु (acrormion process) (स्कैपुला एवं ग्लैविकल हड्डी का सन्धि स्थल) से नीचे बाजुओं तक पहुँच जाता है हाथ की उँगलियों के पोरुओं में सुन्नपन हो जाता है।


  पीठ – गर्दन में लगड़ापन (Lameness) दोनों स्कन्चफलकों के मध्य वेदना मेरुदण्डीय प्रदेश में कमजोरी अनुभव होना; पीठ एवं पैर साथ छोड़ देते हैं। कमरदर्द के साथ-साथ त्रिकारिय एवं कूल्हों में भी दर्द होता है, जो चलने अथवा झुकने पर बढ़ जाता है। चलते समय पैर अन्दर की तरफ मुड जाते हैं। तलुवों में दुखन थकान एवं सूजन अनुभव होती है। हाथ-पैर सूजे हुएहो हैं एवं धोने पर लाल हो जाते हैं और भारी अनुभव होते हैं। (  और अधिक जानें – पैरों की सूजन के कारण )


वृद्धि –  प्रातः जगने पर किसी भी तरह की गति करने पर चलने-फिरने पर, मल त्याग के उपरान्त भोजन के बाद अपरान्ह में खड़े होने पर।

रोग में कमी -खुली ठण्डी हवा में।


सम्बन्ध-

एस्कुलस ग्लैब्रा (Aesculus Glabra)-ओहिओ-बुके मलाशय शोथ अत्यन्त दर्दनाक। गहरे बैंगनी रंग के बाहरी बवासीर साथ में कब्ज घुमेरी एवं यकृत शिराओं में रक्ताधिक्य (portalc  आवाज मोटी गले में अन्दर गुदगुदाहट दृष्टि में कमी आशिक पक्षाघात ।


फाइटोलेक्का (Phytolacca)- (गला खुश्क विशेष कर नवीन रोगों में)


नेगुण्डिम अमेरिकनम (Negundium Americanum)-बॉक्स एल्डर (मलान्त्र में रताधिक्य एवं जबर्दस्त दर्द के साथ अर्श 2-2 घंटे के अन्तराल पर इसके मूलार्क की 8-10 बूंदों की मात्रा को व्यवहत करें।) इनसे भी तुलना करें एलो. कालिनसोनिया; नक्स सल्फर ।


मात्रा– मदर टिंचर की 20 – 20 बूंद दिन में तीन बार दे।


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