डिफ्थीरिया छोटे बच्चों को होने वाला एक भयंकर रोग है इसमें गले की नली और सांस नली में सफेद वर्ण वाली बनावटी झिल्ली बन जाती है और सूजन आ जाती है। गले की ग्रंथियों में सूजन आ जाती है जिस कारण सभी अंगों में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं रोगी अत्यंत दुर्बल हो जाता है। रोगी को पैरालाइसिस, नसों में दर्द आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
डिफ्थीरिया के कारण :Causes of diphtheria:
यह रोग बैक्टीरिया के कारण होता है इसके वायरस का नाम बैसिलस डिफ्थीरिया है। यह बैक्टीरिया रोगी के गले और नाक की श्लेष्मा में स्थित रहता है और उन्हीं स्थानों में वायु के द्वारा अन्य व्यक्ति के गले में जाकर सूजन पैदा कर देता है। यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि इसका किसी को पता ही नहीं चल पाता है। इसके जीवाणु बच्चे के नाक और गले में छिपे रहते हैं जिस कारण बच्चे को बोलने में परेशानी होती है बच्चे को छींकते और खांसते समय यह जीवाणु हवा में फेल कर अन्य लोगों में संक्रमण पैदा कर देते हैं।
परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि डिफ्थीरिया रोग टॉन्सिलाइटिस सूजन, मसूड़े फूल जाना, पायरिया, गले में घाव हो जाना और रोगी का गंदे संक्रमण वाले स्थानों में जाने से होता है। डिफ्थीरिया अधिकतर टोंसिल पर और गले में ही अधिक होता है हमारे मुंह के अंदर जहां कौवा लटका होता है उसके दोनों तरफ टॉन्सिल होते हैं। बच्चों में एक तो सांस मार्ग की चौड़ाई पहले से ही कम होती है,इन स्थानों में झिल्ली बन जाने से सांस लेने में समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे बच्चे की मृत्यु हो सकती है।
डिफ्थीरिया का प्रसार :Spread of diphtheria:
यह रोग ड्रॉपलेट इनफेक्शन द्वारा फैलता है । स्कूल में बच्चे एक दूसरे के पेन पेंसिल या रुमाल का प्रयोग करते हैं जिससे यह रोग शीघ्र फैल जाता है।
कभी-कभी बहुत कम ऐसा भी होता है कि यह संक्रमण आंखों की श्लैष्मिक कला (Mucosal art), खरोंच या त्वचा के रोगों में भी फैल जाता है। 5 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों में इसका संक्रमण हो जाता है 6 महीने से कम आयु के बच्चों में यह रोग अधिक पाया जाता है।
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डिफ्थीरिया के लक्षण :Symptoms of diphtheria:
रोग अधिक होने पर गले और नाक में सूजन आ जाती है। कभी-कभी रोगी को उल्टी और सिर दर्द रहता है। रोगी को कभी-कभी नाक से खून भी निकल आता है। डिफ्थीरिया की यह सबसे बड़ी पहचान है। बैक्टीरिया के संक्रमण से गले में सूजन हो जाने पर स्वरयंत्र Larynx पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ऐसी अवस्था में आवाज फटी फटी या बिल्कुल बंद भी हो जाती है। रोग अधिक हो जाने पर आवाज बंद भी हो जाती है। गले में बलगम होने पर घरघराहट की आवाज सुनाई देती है।
इसका विशिष्ट लक्षण गले में सफेद रंग की झिल्ली का बनना है। जो छोटी-बड़ी कई तरह की स्पष्ट किनारों वाली होती है और इस पर सूजन आ जाती है यह इतनी चिपकी हुई होती है कि कठिनाई से अलग हो पाती है। रोक की तीव्रता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके फैलने की गति क्या है और वह किस संस्थान पर स्थित है।डिफ्थीरिया की आवाज बैठी हुई और खांसी की आवाज ऊंची होती है। नाक से आने वाला खून गाढ़ा और बदबूदार होता है नाक के नीचेेेे चारों तरफ ऊपरी होंठ पर छाले पड़ जाते हैं।